यह कहानी नहीं, यह एक चेतावनी है।
यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की तहसील नोहर में बसे गांव सहारणो की ढाणी की वो सच्चाई है जिसे सुनकर शर्म से सिर झुक जाना चाहिए – लेकिन अफसोस, हमारे जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की गर्दनें अब भी घमंड से तनकर खड़ी हैं।
आज़ादी के 75 साल, और गांव अब भी प्यासा है। जर्मन योजना के नाम पर करोड़ों रुपये स्वाहा हो गए, लेकिन यहां के बच्चों के होंठ अब भी सूखे हैं, और बुज़ुर्गों की आंखें अब आंसू नहीं बहा सकती – क्योंकि उनमें अब नमी नहीं बची।
जर्मन योजना – भ्रष्टाचार की सबसे महंगी स्कीम
हर घर जल का सपना लेकर आई थी “Indo-German Water Supply Scheme”। नोहर तहसील के कई गांवों में इसका प्रचार ज़ोरशोर से हुआ। पाइपलाइन बिछी, शिलान्यास हुए, फ़ोटो खिंचे, और फंड जारी हुए।
लेकिन नतीजा?
✅ पाइपलाइन है – मगर सूखी
✅ टंकी है – मगर खाली
✅ नल है – मगर केवल दिखावे के लिए
पिछले दो महीनों से एक बूंद पानी नहीं आया। जब गांव वाले जलदाय विभाग में जाते हैं, तो वहां से जवाब मिलता है – “ऊपर से आदेश नहीं है।”
क्या जनता की प्यास भी अब आदेशों की मोहताज है?
प्रशासनिक निकम्मापन: जवाब नहीं, सिर्फ बहाने
SDM, BDO, JE, AE, MLA, MP और सर्पंच – ये सारे पद आज गांववालों के लिए केवल नाम हैं, काम का कोई नहीं।
र सरपंच चुनाव जीतने के बाद गांव से ग़ायब
MLA ने सिर्फ भाषण दिए, कभी गांव का दौरा तक नहीं किया
MP को तो शायद गांव का नाम भी याद न हो
कहां गए वो चुनावी वादे? कहां है वो विकास?
यहां तो पानी से पहले वोट मांगने वाले आते हैं, और जीतते ही गायब हो जाते हैं।
🚩 अब गांव करेगा विद्रोह: लोकतंत्र को झकझोरने का समय
सहारणो की ढाणी अब नाच-गाने और शांति का प्रतीक गांव नहीं, बल्कि एक उबलता हुआ ज्वालामुखी है। यहां अब लोग मौन नहीं, गगनभेदी नारे लगा रहे हैं:
🔥 “पानी नहीं – तो वोट नहीं!”
🔥 “पाइप लाइन नहीं – तो MLA ऑफिस घेराबंदी!”
🔥 “सरपंच गूंगा – गांव भूखा-प्यासा!”
🔥 “MP साहब – दिल्ली से जवाब दो या इस्तीफा दो!”
गांव की महिलाएं अब पानी के मटके छोड़, लाठियां उठाने को तैयार हैं। युवा अब मोबाइल पर Instagram नहीं, आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं।
📢 युद्ध की घोषणाएं – ये आंदोलन है, अहिंसक नहीं
गांववालों ने अब तय कर लिया है:
MLA और MP के घरों के सामने प्रदर्शन
प्रशासनिक कार्यालयों का घेराव
राजमार्गों को जाम कर देना
जर्मन योजना की सीबीआई जांच की मांग
राज्यपाल और प्रधानमंत्री को सामूहिक पत्र भेजना
सार्वजनिक भूख हड़ताल
अब ये सिर्फ एक सांकेतिक विरोध नहीं, यह जन क्रांति का बिगुल है।
🛑 मीडिया की चुप्पी भी अपराध है
टीवी चैनल्स को क्रिकेट और लोगों के ड्रामे तो दिखते हैं, लेकिन सहारणो की ढाणी के सूखे नल नहीं।
क्या सिर्फ शहरों के आंदोलन ही “ब्रेकिंग न्यूज़” होते हैं?
क्या एक गांव की सामूहिक प्यास TRP के लायक नहीं?
हम अपील करते हैं हर मीडिया संस्थान से –
“अगर आपके पास पत्रकारिता की आत्मा बाकी है, तो आइए हमारे गांव और दिखाइए सच्चाई।”
⚖️ अब गांव मांगेगा नहीं, लेगा – हक़ से
पानी कोई खैरात नहीं, अधिकार है।
जो सरकारें और नेता यह नहीं दे सकते, उन्हें सत्ता में रहने का कोई हक़ नहीं।
यह लेख सहारणो की ढाणी के हर निवासी की आवाज़ है, और यह आवाज़ अब ऊपर तक जाएगी, और अगर ज़रूरत पड़ी तो सड़कों को भी भर देगी।
✊ अंतिम चेतावनी
“अगर अब भी नल नहीं बहे, तो सड़कों पर जाम लगेगा ।
अगर अब भी शासन नहीं जागा, तो हर घर से एक क्रांतिकारी निकलेगा।
हम पानी के लिए झुकेंगे नहीं – झुका देंगे।”
यह सिर्फ लेख नहीं – यह क्रांति का घोषणा पत्र है।
सुनो राजस्थान सरकार, सुनो नोहर सरकार – अब सहारणो की ढाणी जाग चुकी है।
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Author: Jhalko Bagdi
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